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स न॒: सिन्धु॑मिव ना॒वयाति॑ पर्षा स्व॒स्तये॑। अप॑ न॒: शोशु॑चद॒घम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa naḥ sindhum iva nāvayāti parṣā svastaye | apa naḥ śośucad agham ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। नः॒। सिन्धु॑म्ऽइव। ना॒वया॑। अति॑। प॒र्ष॒। स्व॒स्तये॑। अप॑। नः॒। शोशु॑चत्। अ॒घम् ॥ १.९७.८

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:97» मन्त्र:8 | अष्टक:1» अध्याय:7» वर्ग:5» मन्त्र:8 | मण्डल:1» अनुवाक:15» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह कैसा है, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे जगदीश्वर ! (सः) सो आप कृपा करके (नः) हम लोगों के (स्वस्तये) सुख के लिये (नावया) नाव से (सिन्धुमिव) जैसे समुद्र को पार होते हैं, वैसे दुःखों के (अति, पर्ष) अत्यन्त पार कीजिये (नः) हम लोगों के (अघम्) अशान्ति और आलस्य को (आप, शोशुचत्) निरन्तर दूर कीजिये ॥ ८ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे पार करनेवाला मल्लाह सुखपूर्वक मनुष्य आदि को नाव से समुद्र के पार करता है, वैसे तारनेवाला परमेश्वर विशेष ज्ञान से दुःखसागर से पार करता और वह शीघ्र सुखी करता है ॥ ८ ॥इस सूक्त में सभाध्यक्ष अग्नि और ईश्वर के गुणों के वर्णन से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥यह सत्तानेवाँ सूक्त और पाचवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ।

अन्वय:

हे जगदीश्वर स भवान् कृपया नोऽस्माकं स्वस्तये नावया सिन्धुमिव दुःखान्यति पर्ष नोऽस्माकमघमपशोशुचद्भृशं दूरीकुर्यात् ॥ ८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) जगदीश्वरः (नः) अस्माकम् (सिन्धुमिव) यथा समुद्रं तथा (नावया) नावा। अत्र नौशब्दात्तृतीयैकवचनस्यायाजादेशः। (अति) (पर्ष)। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (स्वस्तये) सुखाय (अप, नः०) इति पूर्ववत् ॥ ८ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। संतारकः सुखेन मनुष्यादीन् नावा सिन्धोरिव परमेश्वरो विज्ञानेन दुःखसागरात्तारयति स सद्यः सुखयति च ॥ ८ ॥ अत्राग्नीश्वरसभाध्यक्षगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेद्यम् ॥इति सप्तनवतितमं सूक्तं पञ्चमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसा पैलतीरी नेणारा नाविक माणसाला सुखाने नावेतून समुद्र पार करवितो तसे तारणारा परमेश्वर विशेष ज्ञानाने दुःखसागरातून पार करवितो व तत्काळ सुखी करतो. ॥ ८ ॥